My photo
Mumbai, Maharastra, India
I have lost myself so until I find him within me there is nothing about me that can be written.

Thursday, March 31

कश्ती कश्ती बदल पहुचे हैं आज वोह किनारे
द्वारपाल पुछा भवसागर का स्वाद तो बता प्यारे 
(द्वारपाल :दरवान,  भवसागर: ocean of life  )

पर जो पानी में कभी उतरा न हो वोह क्या बताता
डूबने का ग़म और तैरने की खुशी कैसे समझाता 

खुसरो कह गए थे इश्क दरिया है, डूब के जाना है
पर आज के दौड़ में किसने उसे माना है
(खुसरो: आमिर खुसरो, तेरहवी सदी के मशहूर कवी)


दुत्कार दिए गए वो फिर, स्वर्ग से युधिस्ठिर के कुत्ते की तरह
जिस पानी में जन्मे है उससे ही बचते रहे कुकुरमुत्ते की तरह
(कुकुरमुत्ते: mushroom)



Friday, March 11

तेरे इश्क में फिरता रहा मैं पग-पग,
छंद बनते रहे, चाल रही मगर डग-मग |

इस चाल को मैं किसी के कन्धों का सहारा देता नहीं,
रात की चढ़ी उतारने के लिए मैं सुबह beer पीता नहीं |

और वह नशा कैसा जो उस नशे से ज्यादा नहीं,
लोग बहुत हैं आस-पास पर कोई उन जैसा नहीं |

इश्क करने वालें जो समझा गए वह झूठ था,
इश्क करके पूछो हमसे, हमें है मिला क्या |

चाहत और मुहब्बत को भी कहतें हैं आज वो इश्क,
डूबते उस खेवट से पूछो हैं इश्क क्या |
( खेवट : नाविक, नाव चलाने वाला)


 


Tuesday, February 8

ठिकाना


घृणित सबा के आँखों में मैं पानी बन छिप जाऊंगा 
वो आंसू जो बहे तो लंहू बन जाए पर बहार कभी ना मैं आऊंगा

(सबा: हवा का झोका, घृणित: जो खुद को घृणा करता हो)

टप-टप रोए घृणित सबा जब याद उसे मैं आऊंगा
तब ललाट की शिकनों में छिप, एक सोच सा बन जाऊंगा 

(ललाट: माथा, forehead, शिकनों: माथें पर पड़ी निशान)

घृणित सबा के आँखों में मैं पानी बन छिप जाऊँगा 
और उसके चाहने पर भी बाहर कभी ना मैं आऊंगा 

इस मठमैली दुनिया को मैं उसे छान-छान दिखलाऊंगा 
घृणित सबा के आँखों के आगे मैं जल-कवच सा बन जाऊंगा 

(मठमैली: गंदी, छान: साफ़ कर के, जल-कवच: a sheild of water)

तरल, निर्मल, शीतल सा यूही मै जीवनव्यतीत कर पाउँगा 
घृणित सबा के आँखों में मैं पानी बन छिप जाऊँगा
                                                          
  (जीवनव्यतीत : जीवन बिताना)

Sunday, February 6

थोड़ी सी

छूट गए हैं दोस्त मेरे; थोड़े से
रूठ गया हू मै भी उनसे; थोडा सा 

थोड़े से दोस्ती टूट गई हैं ज़िन्दगी के जद्दोजहद में
और थोड़े दोस्त छूट गए हैं कटुवचनों से, जो डूबे थे सहद में

थोड़ी सी दोस्ती छूट गयी है स्टेशन के रास्ते की उन अटखलियों में
और थोड़ी छुटी कॉलेज के उन गलियों में

थोड़ी सी दोस्ती छूट गयी है मेरी नाकामी से,
और थोड़े दोस्त टूट गए हैं नए दोस्तों की हामी से

थोड़ी टूटी बनाने को नए जिस्मानी रिश्ते
और थोड़ी छुटी भरने को लोन की वो किश्ते

थोड़े से दोस्त छूट गए मेरे हट से
और थोड़ी दोस्ती टूटी एकाएक फट से

महंगाई से दौड़ में, बस दोस्ती लगे है हमें सस्ती
तोड़ दिया हमने बनाने को अपनी अलग एक हस्ती



Sunday, June 27

     तनु

तुमसे तृप्त होकर
सदा लिप्त होकर
मिला मुझे आत्मज्ञान,
भूल गया मै अपनी पहचान |

मै कौन, कौन हू मै
हु गिरिधर या हू संजय,
हु कायर या हू निर्भय,
जीता हु, या हो चुकी है शय,
मै कौन, कौन हू मै ?

हु भाग्यविधाता या भाग्यहीन कवी,
हु अनजान या हू सर्वत्र, रवि,
माओवादी हू या नक्सली,
स्वतंत्रता सेनानी हु या हू बस बाहुबली,
मै कौन, कौन हु मै ?
जिंदा हु या मृत,
जला हु या हू मटमादित,
ईशा हु या मसि(२)-हा हू मै वनवाशी,

मै हू,एक अनजान नाम,
एक कविता का शिर्षक,
एक कवी जिसके बेमाने से काम|

Monday, March 29

तलब लगी है


तलब लगी है, सांस लेनी है ढूँढ रहा हु |
भागा नहीं, हाफ्फ़ रहा हु |
पसीना भी आने लगा है अब,
कोई तिंका ही सही सहारा ढूँढ रहा हु |
कहा तक भागू,
कोई तो मिले जिसे पकड़ कर रुक सकू, शायद रो सकू |

अँधेरा,
मेरी सांसे हफ्ते हुए,
धड़कने बढ़ते हुए,
ये क्या हुआ, तलब बढ़ रही है अब |

मैंने कैसे ऐसा होने दिया,
खुद के लिए एक निकृष्ट नपुंसक सी भावना आ रही है |
अपने आँखों के सामने मैंने उसे कैसे जाने दिया,
अब वह कभी नहीं मिलेगी,
बस यही तक था सब, यह मैंने क्या किया |

 बस हफ्ते भर पहले उसके जन्मदिवस पर फूल भेट किये थे,
वोह फूल सूखे ना होंगे अब तक |
अब तो कहाँ तक दौड़ा, मालूम नही,
हाफ़ और ज्यादा रहा हु,
बस किसी चीज़ की तलब लगी है |
वह मिल जाये,
मै ठीक हो जाऊ|

अब तो ढूँढने पे भी साँसे नहीं मिल रही है,
भागते-भागते मै अँधेरे में जैसे रुक सा गया |.
हाफ़ अब भी रहा हु,
तलब तो चरम सीमा पर है अब| .

थोड़ी सी रौशनी,
सामने से कुछ आता हुआ |
नजदीक आता गया,
मै खड़ा हु, कोई तो दिखा,
शायद इससे पकड़ कर रो लू |
दो आंसू बहे  तो  मन हल्का हो जाये,
शायद तलब कम हो जाये |

वह अब बोहत करीब आ गया है |
मुझे  बस रौशनी दिखाई दे रही है |
मेरी नींद खुल गयी, और मै शायद कल बत्ती जलते हुए छोड़ के ही सो गया | .

प़र तलब अब भी है,
सांसे अब भी तेज़ है,
मतलब मै सच में हाफ रहा हु |
क्या करू किमकर्तव्यविमूढ़ सा हो गया हु |
आस पास देखा, कल लैपटॉप चालू छोडके ही सो गया था |
झट-पट उठके लिखने लगा |

मैंने एक सपना देखा, मेरी २ साल की ………………. छोड़िए बस एक सपना देखा, पर तलब अब भी है |
 



किमकर्तव्यविमूढ़   : क्या करू क्या ना करू की परिस्थिति|


Friday, March 26

अंत


दो लोग, कब तक साथ रह सकते है,
कयामत;
कयामत तो अब नज़दीक होते हुए भी दूर लग रही है |
ज़िन्दगी छोटी और इंसानियत मजबूर लग रही है |

 मगर आज, अंत, दिखा है मुझे 
क़यामत नहीं, एक किस्से का अंत, 
किस्सा कहें  या ज़िन्दगी के एक हिस्से का अंत,
बस आज अंत दिखा है मुझे|

  
हर उस सुबह की शाम का अंत,
हर उस आगाज़ के अंजाम का अंत,
हर उस मीरा के श्याम का अंत
बस आज अंत दिखा है मुझे|


Waiting for the Ray.....

सूरज के उस पहली किरण के इंतज़ार मे, मैंने ये रात गुजारी है,
यहाँ खुशिया ना है,
बस ग़म ही ग़म है,
दुखे ही सारी है,
सूरज के उस पहली किरण के इंतज़ार में,
मैंने ये रात गुजारी है|

ये अँधेरा भी क्या चीज़ है,
दीखता कुछ ना यहाँ,
पर दिखती हर देहलीज़ है|
किसी का ना चेहरा दीखता,
पर दिखती सब के मन की खींच है |
सूरज के उस पहली किरण के इंतज़ार में,
मैंने दिया अँधेरे को सींच है|

इस अँधेरे में लगता कोई ना अपना है,
पर सूरज के उस पहली किरण का इंतज़ार,
वह सपना, बस वोह मेरा अपना है|
 
घोर अँधेरे में खड़ा आज मै,
पर अब येही रौशनी ढूँढता हु,
हु वही, हु वही जहाँ पहले था
पर अब येही दिल्लगी ढूँढता हु|

देखता आ रहा हु सालों से,
कभी उनकी, कभी उसकी,
पर आज मेरी बारी है|
क्योंकि सूरज के उस पहली किरण के इंतज़ार में
मैंने ये रात गुज़री है,
 
फर्क बस इतना ह,
सब गर्मी, और मै सर्दी की रात गुजार रहा हु,
सूरज के उस पहली किरण के इंतज़ार में,
मै बेदर्दी की रात गुजार रहा हु|

आस....

एक राह पर मिले, है अनेक बुलबुले,
फट जाते, लुट जाते, मिट जाते,
है फिर भी, अनेक फूल एकता में है खिले

देश ये अपना है, वतन भी तो अपना है,
देश ये अपना है, वतन भी तो अपना है,
फिर भी नेताओ को ही दोष क्यों दिए,
देश जो अपना है, दोष भी ये अपना है,
भूलना ना जो कहर हमने है किये


दिल में जो दर्द है उसे वोट बन जाने दो
वोह परदे में है छुपा 
वोह परदे में है छुपा
पर्दा फाश हो जाने दो
ये आस है मेरी इसे हकीकत बन जाने दो |

Saturday, October 10

अन्जाम



साले हम ही छूट गए पीछे,

बाकि सब आँखे मीचे, ऐश में;

मेरे नज़रो के नीचे ,

नर्म गोश्त के मज़े लूटते,

नदीम बनके हमसे आदिल पूछते

( नदीम: दोस्त, आदिल : सही-ग़लत )



हम भी जान के नामालूम बने है बैठे

रुतबे के गरम जोश में,

चढी हुई डगमगाती होश में,

आधी आधूरी किसी फिरदौस में,

अपने उन्ही वीरानियों के आगोश में,

साले हम ही छूट गए पीछे |

( फिरदौस: जन्नत )



फासला अब शायद बढ़ता जाएगा,

लोग दूर, और मेरा अहम करीब आएगा,

गिरते चढाते पैमोनो पर रिश्ते तौले जाएंगे

कराह कर हर शक्स को वो अपना दुखरा सुनाएंगे |



अज़ नसिहतों की एक दौड़ चलेगी

हर्फ़-हर्फ हमारे दिल को चुभेगी,

येही हमारे इश्क का होगा अन्जाम,

पीछे छूटते रिश्तों में फिर जुडेगा हमारा भी नाम |

( अज़: फिर ,हर्फ़-हर्फ़: शब्द के हर अक्षर )


Sunday, August 30

बारिश

आज फिर बारिश में कोई रो रहा होगा,
और कही इसी बारिश में कोई ठिठो रहा होगा|
कही दूर, इसी बारिश में किसी को इश्क भी हो रहा होगा|

बारिश तो एक है,
लोग निकालते मतलब अनेक है|
मै सोचता हु,
मेरी बर्बादी पे शायद जन्नत भी रो रहा होगा|

Wednesday, August 26

मृत्युदान



हे माँ तेरी गोद में सर रखकर सोना चाहता हु मै,
ज़िन्दगी के ग़मों को तेरी ममता की छामें खोना चाहता हु मै,
आज मत रोक तू माँ, जी भर रोना चाहता हु मैं|

क्या बचपन था वो,
जब हर ठोकर पर तू मुझे थी समहलती,
हर गलती पर तू , मुझे थी सवारती,
गुस्सा जाता था मै पर हर बार तू मुझे थी मनाती|

क्या बचपन था वो जब हर राह,
तू मेरे साथी चलती|

बता ना माँ क्या हुई है मुझसे आज गलती,
जो तू नही है मेरे साथ,
किसका थामू मै आज हाथ|
घोर है अँधेरा, काली है रात,
किस ओर चालू मै,
किसकी सुनु मै आज बात ?

चुप क्यों है माँ तू बता ना कौन देगा मेरा साथ,
कौन सुनेगा मेरे दिल की बात|

हे माँ अब आजा तू तेरी गोद में सो जाता हु मै,
जिंदगी छोड़ तेरी ममता के छामें खो जाता हु मै,
आज मत रोक माँ आखिरी बार आज सो जाता हु मै|

सुन आज आधी नींद से मत जगाना,
सपने में कही दूर है मुझे जाना,
आज तुझे ही तो हैं मुझे रास्ता पार करवाना|

आज तुझे हे तो है मुझे मृत्युदान देना...
आज तुझे हे तो है मुझे मृत्युदान देना...


SMILES


Caught in darkness,

but happy I am,

Outside is bright a lot.

Walking on lanes,

I fall,quickly I get up,

because I dont want to be stamped at all।

Studying,is tough for me,

but I try my hands on it; they crawl।

People laughed,

when I did pole dance with a stick and my freinds;danced ball.

Hanging out, someone shouts in my ear

and I get shocked,tears roll down my eyes.

I remember the day trains were rocked.

Bomb blast,took away my vision,

But gave,the mantra of finding happiness and fun.

I feel, you have everything

but Smiles, NONE।

Tuesday, August 25

Repentment


Today sitting in my room

I let myself loom,

I try to think about

the things I wanted and I got,

but feel, for them too much has been lost.

When calculated,

high comes the living of cost,


but still,

to add my precious time and effort, I forgot,

And forgot,

the people with whom, I fought,

Now, when I am divorced

I feel leavng my mom and dad for you

is something I should have done,not,

but thinking about this is useless right now.

Because are already past

only their memories n my Repentment Clot.


.....कैसा यह लोकतंत्र .....


गया चुनाव है

बिक रहा हर गाँव है

हर जगह तनाव है ..




वोटो की लूट है

किसका वादा झूठ है

क्या गठबंधन अटूट है





बट रहा शराब है

काले धन का ब़स बहाओ है

क्या गाँधी का यह ख़ाब है




नेताओ की जेब हरी

आज चमचो की जेब भरी

पर पब्लिक है डरी डरी



यह कैसा लोकतंत्र, कैसा यह चुनाव है

जनता चाहती बदलाव है

कौन है इसका ठेकेदार, है कोइ जिम्मेदार

बातों के सब ब़स शेर है,

ज़िम्मेदारी दो तो ढेर है

तो कैसा ये लोकतंत्र, कैसा ये चुनाव है ...

कैसा ये लोकतंत्र, कैसा ये चुनाव है ||