My photo
Mumbai, Maharastra, India
I have lost myself so until I find him within me there is nothing about me that can be written.

Tuesday, February 8

ठिकाना


घृणित सबा के आँखों में मैं पानी बन छिप जाऊंगा 
वो आंसू जो बहे तो लंहू बन जाए पर बहार कभी ना मैं आऊंगा

(सबा: हवा का झोका, घृणित: जो खुद को घृणा करता हो)

टप-टप रोए घृणित सबा जब याद उसे मैं आऊंगा
तब ललाट की शिकनों में छिप, एक सोच सा बन जाऊंगा 

(ललाट: माथा, forehead, शिकनों: माथें पर पड़ी निशान)

घृणित सबा के आँखों में मैं पानी बन छिप जाऊँगा 
और उसके चाहने पर भी बाहर कभी ना मैं आऊंगा 

इस मठमैली दुनिया को मैं उसे छान-छान दिखलाऊंगा 
घृणित सबा के आँखों के आगे मैं जल-कवच सा बन जाऊंगा 

(मठमैली: गंदी, छान: साफ़ कर के, जल-कवच: a sheild of water)

तरल, निर्मल, शीतल सा यूही मै जीवनव्यतीत कर पाउँगा 
घृणित सबा के आँखों में मैं पानी बन छिप जाऊँगा
                                                          
  (जीवनव्यतीत : जीवन बिताना)

Sunday, February 6

थोड़ी सी

छूट गए हैं दोस्त मेरे; थोड़े से
रूठ गया हू मै भी उनसे; थोडा सा 

थोड़े से दोस्ती टूट गई हैं ज़िन्दगी के जद्दोजहद में
और थोड़े दोस्त छूट गए हैं कटुवचनों से, जो डूबे थे सहद में

थोड़ी सी दोस्ती छूट गयी है स्टेशन के रास्ते की उन अटखलियों में
और थोड़ी छुटी कॉलेज के उन गलियों में

थोड़ी सी दोस्ती छूट गयी है मेरी नाकामी से,
और थोड़े दोस्त टूट गए हैं नए दोस्तों की हामी से

थोड़ी टूटी बनाने को नए जिस्मानी रिश्ते
और थोड़ी छुटी भरने को लोन की वो किश्ते

थोड़े से दोस्त छूट गए मेरे हट से
और थोड़ी दोस्ती टूटी एकाएक फट से

महंगाई से दौड़ में, बस दोस्ती लगे है हमें सस्ती
तोड़ दिया हमने बनाने को अपनी अलग एक हस्ती