अन्जाम
साले हम ही छूट गए पीछे,
बाकि सब आँखे मीचे, ऐश में;
मेरे नज़रो के नीचे ,
नर्म गोश्त के मज़े लूटते,
नदीम बनके हमसे आदिल पूछते
( नदीम: दोस्त, आदिल : सही-ग़लत )
हम भी जान के नामालूम बने है बैठे
रुतबे के गरम जोश में,
चढी हुई डगमगाती होश में,
आधी आधूरी किसी फिरदौस में,
अपने उन्ही वीरानियों के आगोश में,
( फिरदौस: जन्नत )
फासला अब शायद बढ़ता जाएगा,
लोग दूर, और मेरा अहम करीब आएगा,
गिरते चढाते पैमोनो पर रिश्ते तौले जाएंगे
कराह कर हर शक्स को वो अपना दुखरा सुनाएंगे |
अज़ नसिहतों की एक दौड़ चलेगी
हर्फ़-हर्फ हमारे दिल को चुभेगी,
येही हमारे इश्क का होगा अन्जाम,
पीछे छूटते रिश्तों में फिर जुडेगा हमारा भी नाम |
( अज़: फिर ,हर्फ़-हर्फ़: शब्द के हर अक्षर )