दो लोग, कब तक साथ रह सकते है,
कयामत;
कयामत तो अब नज़दीक होते हुए भी दूर लग रही है |
ज़िन्दगी छोटी और इंसानियत मजबूर लग रही है |
मगर आज, अंत, दिखा है मुझे
क़यामत नहीं, एक किस्से का अंत,
किस्सा कहें या ज़िन्दगी के एक हिस्से का अंत,
बस आज अंत दिखा है मुझे|
हर उस सुबह की शाम का अंत,
हर उस आगाज़ के अंजाम का अंत,
हर उस मीरा के श्याम का अंत
बस आज अंत दिखा है मुझे|
Jis cheez ki shuruaat hogi,uska ant bhi hoga..hame is tathya ko sweekar ke jeena hoga!
ReplyDeleteAnek shubhkamnayen!
nice thought.. but lot of gender mistakes..
ReplyDeleteQAYAAMAT- feminine
INSANIYAT - feminine
SHAAM - feminine "SUBAH KI SHAAM" not "subah ke shaam"
कुछ तो संबंधों की शुरुआत ही स्वार्थ समाप्त होने पर अंत की योजना बनाकर अंत करते हैं संबंध.
ReplyDeleteये अंत नहीं शुरूआत है..देखने का नजरियां बदलो...दुनिया खुद ब खुद बदल जाएगी
ReplyDeleteरोमल भावसा
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteMaine aj jab apna blog khola mai dar gaya, ek saath itne log mere kavita pe reply karenge ye kabhe socha nahi tha.
ReplyDeleteDhanyavaad sab logo ka, mujhe lagta hai kisi group se mera blog link hua hai par mujhe samajh nahi aa rha kripya kar ke koi meri sahayata kare..
Samvedna ke swar blog jin mahashay ka hia unhe vishes dhanyavaad.. English se hindi me transcript hone ke vajah se kuch galtiya aa jati hai.. vawishya me bhe aise galtiyo ko kipya mujhe btayein.. dhanyavaad