तेरे इश्क में फिरता रहा मैं पग-पग,
छंद बनते रहे, चाल रही मगर डग-मग |
इस चाल को मैं किसी के कन्धों का सहारा देता नहीं,
रात की चढ़ी उतारने के लिए मैं सुबह beer पीता नहीं |
और वह नशा कैसा जो उस नशे से ज्यादा नहीं,
लोग बहुत हैं आस-पास पर कोई उन जैसा नहीं |
इश्क करने वालें जो समझा गए वह झूठ था,
इश्क करके पूछो हमसे, हमें है मिला क्या |
चाहत और मुहब्बत को भी कहतें हैं आज वो इश्क,
डूबते उस खेवट से पूछो हैं इश्क क्या |
( खेवट : नाविक, नाव चलाने वाला)
( खेवट : नाविक, नाव चलाने वाला)
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