(खुसरो: आमिर खुसरो, तेरहवी सदी के मशहूर कवी)
Thursday, March 31
(खुसरो: आमिर खुसरो, तेरहवी सदी के मशहूर कवी)
Friday, March 11
( खेवट : नाविक, नाव चलाने वाला)
Tuesday, February 8
ठिकाना
घृणित सबा के आँखों में मैं पानी बन छिप जाऊंगा
Sunday, February 6
थोड़ी सी
रूठ गया हू मै भी उनसे; थोडा सा
थोड़े से दोस्ती टूट गई हैं ज़िन्दगी के जद्दोजहद में
और थोड़े दोस्त छूट गए हैं कटुवचनों से, जो डूबे थे सहद में
थोड़ी सी दोस्ती छूट गयी है स्टेशन के रास्ते की उन अटखलियों में
और थोड़ी छुटी कॉलेज के उन गलियों में
थोड़ी सी दोस्ती छूट गयी है मेरी नाकामी से,
और थोड़े दोस्त टूट गए हैं नए दोस्तों की हामी से
थोड़ी टूटी बनाने को नए जिस्मानी रिश्ते
और थोड़ी छुटी भरने को लोन की वो किश्ते
थोड़े से दोस्त छूट गए मेरे हट से
और थोड़ी दोस्ती टूटी एकाएक फट से
महंगाई से दौड़ में, बस दोस्ती लगे है हमें सस्ती
तोड़ दिया हमने बनाने को अपनी अलग एक हस्ती
Sunday, June 27
तुमसे तृप्त होकर
सदा लिप्त होकर
मिला मुझे आत्मज्ञान,
भूल गया मै अपनी पहचान |
मै कौन, कौन हू मै
हु गिरिधर या हू संजय,
हु कायर या हू निर्भय,
जीता हु, या हो चुकी है शय,
मै कौन, कौन हू मै ?
हु भाग्यविधाता या भाग्यहीन कवी,
हु अनजान या हू सर्वत्र, रवि,
माओवादी हू या नक्सली,
स्वतंत्रता सेनानी हु या हू बस बाहुबली,
मै कौन, कौन हु मै ?
जिंदा हु या मृत,
जला हु या हू मटमादित,
ईशा हु या मसि(२)-हा हू मै वनवाशी,
मै हू,एक अनजान नाम,
एक कविता का शिर्षक,
एक कवी जिसके बेमाने से काम|
Monday, March 29
तलब लगी है
Friday, March 26
अंत
Waiting for the Ray.....
यहाँ खुशिया ना है,
बस ग़म ही ग़म है,
दुखे ही सारी है,
सूरज के उस पहली किरण के इंतज़ार में,
मैंने ये रात गुजारी है|
ये अँधेरा भी क्या चीज़ है,
दीखता कुछ ना यहाँ,
पर दिखती हर देहलीज़ है|
किसी का ना चेहरा दीखता,
पर दिखती सब के मन की खींच है |
सूरज के उस पहली किरण के इंतज़ार में,
मैंने दिया अँधेरे को सींच है|
इस अँधेरे में लगता कोई ना अपना है,
पर सूरज के उस पहली किरण का इंतज़ार,
वह सपना, बस वोह मेरा अपना है|
घोर अँधेरे में खड़ा आज मै,
पर अब येही रौशनी ढूँढता हु,
हु वही, हु वही जहाँ पहले था
पर अब येही दिल्लगी ढूँढता हु|
देखता आ रहा हु सालों से,
कभी उनकी, कभी उसकी,
पर आज मेरी बारी है|
क्योंकि सूरज के उस पहली किरण के इंतज़ार में
मैंने ये रात गुज़री है,
फर्क बस इतना ह,
सब गर्मी, और मै सर्दी की रात गुजार रहा हु,
सूरज के उस पहली किरण के इंतज़ार में,
मै बेदर्दी की रात गुजार रहा हु|
आस....
फट जाते, लुट जाते, मिट जाते,
है फिर भी, अनेक फूल एकता में है खिले
देश ये अपना है, वतन भी तो अपना है,
देश ये अपना है, वतन भी तो अपना है,
फिर भी नेताओ को ही दोष क्यों दिए,
देश जो अपना है, दोष भी ये अपना है,
भूलना ना जो कहर हमने है किये
दिल में जो दर्द है उसे वोट बन जाने दो
वोह परदे में है छुपा
वोह परदे में है छुपा
पर्दा फाश हो जाने दो
ये आस है मेरी इसे हकीकत बन जाने दो |
Saturday, October 10
अन्जाम
साले हम ही छूट गए पीछे,
बाकि सब आँखे मीचे, ऐश में;
मेरे नज़रो के नीचे ,
नर्म गोश्त के मज़े लूटते,
नदीम बनके हमसे आदिल पूछते
( नदीम: दोस्त, आदिल : सही-ग़लत )
हम भी जान के नामालूम बने है बैठे
रुतबे के गरम जोश में,
चढी हुई डगमगाती होश में,
आधी आधूरी किसी फिरदौस में,
अपने उन्ही वीरानियों के आगोश में,
( फिरदौस: जन्नत )
फासला अब शायद बढ़ता जाएगा,
लोग दूर, और मेरा अहम करीब आएगा,
गिरते चढाते पैमोनो पर रिश्ते तौले जाएंगे
कराह कर हर शक्स को वो अपना दुखरा सुनाएंगे |
अज़ नसिहतों की एक दौड़ चलेगी
हर्फ़-हर्फ हमारे दिल को चुभेगी,
येही हमारे इश्क का होगा अन्जाम,
पीछे छूटते रिश्तों में फिर जुडेगा हमारा भी नाम |
( अज़: फिर ,हर्फ़-हर्फ़: शब्द के हर अक्षर )
Sunday, August 30
बारिश
और कही इसी बारिश में कोई ठिठो रहा होगा|
कही दूर, इसी बारिश में किसी को इश्क भी हो रहा होगा|
बारिश तो एक है,
लोग निकालते मतलब अनेक है|
मै सोचता हु,
मेरी बर्बादी पे शायद जन्नत भी रो रहा होगा|
Wednesday, August 26
मृत्युदान
ज़िन्दगी के ग़मों को तेरी ममता की छाव में खोना चाहता हु मै,
आज मत रोक तू माँ, जी भर रोना चाहता हु मैं|
जब हर ठोकर पर तू मुझे थी समहलती,
हर गलती पर तू , मुझे थी सवारती,
गुस्सा जाता था मै पर हर बार तू मुझे थी मनाती|
क्या बचपन था वो जब हर राह,
तू मेरे साथ थी चलती|
बता ना माँ क्या हुई है मुझसे आज गलती,
जो तू नही है मेरे साथ,
किसका थामू मै आज हाथ|
घोर है अँधेरा, काली है रात,
किस ओर चालू मै,
किसकी सुनु मै आज बात ?
चुप क्यों है माँ तू बता ना कौन देगा मेरा साथ,
कौन सुनेगा मेरे दिल की बात|
हे माँ अब आजा तू तेरी गोद में सो जाता हु मै,
जिंदगी छोड़ तेरी ममता के छाव में खो जाता हु मै,
आज मत रोक माँ आखिरी बार आज सो जाता हु मै|
सुन आज आधी नींद से मत जगाना,
सपने में कही दूर है मुझे जाना,
आज तुझे ही तो हैं मुझे रास्ता पार करवाना|
आज तुझे हे तो है मुझे मृत्युदान देना...
आज तुझे हे तो है मुझे मृत्युदान देना...
SMILES
Caught in darkness,
but happy I am,
Outside is bright a lot.
Walking on lanes,
I fall,quickly I get up,
because I dont want to be stamped at all।
Studying,is tough for me,
but I try my hands on it; they crawl।
People laughed,
when I did pole dance with a stick and my freinds;danced ball.
Hanging out, someone shouts in my ear
and I get shocked,tears roll down my eyes.
I remember the day trains were rocked.
Bomb blast,took away my vision,
But gave,the mantra of finding happiness and fun.
I feel, you have everything
but Smiles, NONE।
Tuesday, August 25
Repentment
Today sitting in my room
I let myself loom,
I try to think about
the things I wanted and I got,
but feel, for them too much has been lost.
When calculated,
high comes the living of cost,
but still,
to add my precious time and effort, I forgot,
And forgot,
the people with whom, I fought,
Now, when I am divorced
I feel leavng my mom and dad for you
is something I should have done,not,
but thinking about this is useless right now.
Because are already past
only their memories n my Repentment Clot.
.....कैसा यह लोकतंत्र .....
बिक रहा हर गाँव है
हर जगह तनाव है ..
वोटो की लूट है
किसका वादा झूठ है
क्या गठबंधन अटूट है
बट रहा शराब है
काले धन का ब़स बहाओ है
क्या गाँधी का यह ख़ाब है
नेताओ की जेब हरी
आज चमचो की जेब भरी
पर पब्लिक है डरी डरी
यह कैसा लोकतंत्र, कैसा यह चुनाव है
जनता चाहती बदलाव है
कौन है इसका ठेकेदार, है कोइ जिम्मेदार
बातों के सब ब़स शेर है,
ज़िम्मेदारी दो तो ढेर है
तो कैसा ये लोकतंत्र, कैसा ये चुनाव है ...
कैसा ये लोकतंत्र, कैसा ये चुनाव है ||